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इतनी हाय तौबा क्यों…JAGRAN JUNCTION FORUM

Aakhir Kab Tak ...!
Aakhir Kab Tak ...!
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कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।
यदि ऐसे लोगों की बातें न करें तो यह स्पष्ट है कि अबतक अन्ना जी एवं उनकी टीम
ने जो आन्दोलन चलाया वो निर्विवाद रुप से देश हित है और जिस तरह से चलाया वो यदि आदर्श
नहीं है तो आज के समय में उससे बेहतर तरीक़ा भी नही है। जितनी भी बार देश व्यापी आन्दोलन चलाया गया
उसको अपार जन समर्थन मिला और लोगों ने अनुशासन की मिशाल कायम की।कुछ और कहने से
पहले इस मुद्दे के चारों प्रश्नों का उत्तर देना आवश्यक है…
1. टीम अन्ना का राजनीति में प्रवेश आत्मघाती तो नहीं?
यदि मधुमेह के रोगी,80 साल के वृद्ध, कैंसर के रोगियों का अनशन पर बैठना आत्मघाती नहीं था तो
यह निर्णय भी आतमघाती नहीं हो सकता। टीम अन्ना के लिये आत्मघाती होने का अर्थ क्या है?
टीम अन्ना कोई व्यवसायिक कम्पनी नहीं है कि डूब जायेगी।टीम अन्ना में लोग स्वेक्षा से जुड़ते हैं
और उसमें कुछ मौलाना और अग्निवेश जैसे जासूस भी पहुँच जाते हैं।अन्ना,केजरीवाल,किरन बेदी आदि
ने यदि अपनी अच्छी खासी नौकरी पद त्याग दिया ये दूसरों के लिये आत्मघाती विचार हो सकता है,
इन लोगों का लिये नहीं। जिस आन्दोलन में देश के दूसरे भागों से आकर आकर दिल्ली में अपनी उपस्थिती
दिखा पाना आसान ना हो,विभिन नगरों में हो रहे धरना प्रदर्शन को दिखाने की मीडिया को मनाही हो ,
चन्द पटोखे फोड़कर लोगों और मीडिया का ध्यान अनशन से हटाने की कोशिश हो वैसे समय मे
भारतीय जनता को राजनैतिक विकल्प दे कर अन्ना एवं टीम अन्ना ने सटीक कद़म उठाया है।
परिणाम कुछ भी हो निर्णय एकदम सही है। जनता की भी कोई जिम्मेदारी बनती है या मात्र अन्ना एवं टीम अन्ना की ही…
2. क्या टीम अन्ना का राजनीति में आने का फैसला देश की तकदीर बदलेगा?
यदि टीम अन्ना ने समय पूर्व अपना राजनैतिक संगठन तैयार कर लिया ,और तथाकथित
बुद्धिजीवी प्राणियों ने जनता को दिगभ्रमित करना छोड़ दिया एवं सुविचारवान लोगों ने जनता का
सही मार्गदर्शन किया तो निश्चित देश की तकदीर बदल जायेगी। यदि अन्ना टीम मात्र 100 सीट भी
जीत लेती है तो बिना उसके समर्थन से सरकार नही बनेगी, और टीम अन्ना समर्थित सरकार को
दबाव में लेकर राइट टू रिकाल और राइट टू रीजेक्ट तो पास ही करवा लेगी। ये दोनों कानून जनलोकपाल
विरोधी सांसदों को राजनीति से दूर कर देंगे। स्पष्ट है कि देश एवं समाज की तकदीर बदल जायेगी।

3. राजनीति में स्वच्छ चरित्र वाले व्यक्तियों का प्रवेश होना चाहिए किंतु टीम अन्ना स्वयं स्वच्छ चरित्र की परिभाषा पर कितनी खरी उतरती है?
सभी लोग अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल या किरन बेदी नहीं हो सकते। गांधी जी के साथ भी कैसे कैसे
लोग लगे थे सर्वविदित है। कम से कम इन लोगों के स्वच्छ चरित्र पर संदेह नहीं है।छोटी छोटी बातों को उठाकर इनके चरित्रहनन का प्रयास इन्हे और प्रसिद्दि ही दिलायेगा। अन्ना टीम अपनी छवि पर सावधान रहेगी।

4. 2014 को देखते हुए टीम अन्ना के राजनीति में प्रवेश करने से कांग्रेस और भाजपा के मजबूत विकल्प की कितनी संभावना है?
बहुत मजबूत विकल्प बन सकती है किन्तु यह निर्भर करेगा कि उचित समयावधि मे टीम अन्ना एक
संगठन तैयार कर पाती है या नहीं।

टीम अन्ना के राजनीति मे आने के निर्णय को कई रुप मे देखा या दिखाया जा रहा है।
संक्षेप में यही कहना है कि यह निर्णय बिल्कुल सही निर्णय है। ये कोई पूर्व निर्धारित पैंतरेबाजी नहीं है क्योंकि
केजरीवाल जी ने स्पष्ट कहा है कि अभी भी लगभग दो साल का समय है,यदि सरकार तीनों कानून पास
कर देती है तो वह चुनाव में नहीं उतरेंगे। जिन लोगो को उनकी आलोचना ही करनी है भला उनको ये बातें
क्यों सुनाई देंगी। ऐसा भी नहीं है कि उनका आन्दोलन कमजोर पड़ रहा था। सरकार ने आन्दोलन को
धूमिल करने के लिये कितनी ओछी हरकतें की सभी को पता है। मीडिया पर अंकुश, पुणे में पटाखे फोड़ना आदि
कौन नहीं जानता। विभिन्न शहरो में हो रहे धरना प्रदर्शन को मीडिया में तनिक भी जगह नहीं मिली।
अधिकतर इलेक्ट्रानिक मीडिया के मालिक तो विदेशी हैं किन्तु दैनिक जागरण जैसे राष्ट्रवाद का दम्भ
भरने वाले समाचार पत्र भी सरकारी दबाव के आगे कुछ न कर सके।पुणे में बम या पटाखे फूटने से यह
समाचार अनायास ही सामने आ ही गया कि पुणे में वहां पास मे ही अन्ना समर्थन में धरना चल रहा था।
ऐसे ही न जाने कितने शहरों मे आन्दोलन का समर्थन किया जा रहा था। मात्र जंतर मंतर के जनसमुदाय की संख्या पर ही सारा गुणा भाग किया जा रहा है।
आन्दोलन को राजनैतिक दिशा दिये जाने को कुछ लोग आन्दोलन की असफलता और मौत तक कह
दे रहे हैं। उनको यह नहीं समझ मे आ रहा है कि जो व्यक्ति किसी भी कारण से किसी धरना-प्रदर्शन में नहीं
भाग ले सकता वो अब अपना समर्थन अपने वोट के माध्यम से देगा, जिसके परिणाम को सारी दुनिया की
मीडिया बढ़ चढ़ के दिखायेगी। राजनैतिक विकल्प के रूप में इस आन्दोलन को संजीवनी मिल गयी है।
आन्दोलन में अनशन का उद्देश्य जन जागृति ला कर और सरकार की तानाशाही,संवेदनहीनता और
भ्रष्टाचारियों की संरक्षक होने की असलियत उजागर कर पूरा हो गया।जब वो कहते थे कि कानून सड़कों पर
नहीं बनते ,संसद में बनते हैं,तो सड़क पर उतरने वाली जनता ही संसद ही बना देगी।
जागरूगता पैदा करने के लिये इतनी तपस्या के बाद अब भारत की जनता के हाथ में
ही इस आन्दोलन की कमान सौंप दी गयी है जिसके लिये ये आन्दोलन है। अन्ना या केजरीवाल ने
अपने किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये ये आन्दोलन नहीं चलाया था। अब यदि ये आन्दोलन राजनीति
में आने के बाद सफल-असफल होता है तो ये अन्ना या केजरीवाल की सफलता-असफलता नहीं होगी
बल्कि इससे यही सिद्ध होगा कि भारत की जनता कितनी परिपक्व या अपरिपक्व है।
कुछ बुद्धिजीवी तो इस आन्दोलन को कुछ लोगों की सफलता – असफलता से जोड़कर
ऐसे मजे लेकर देख रहे हैं जैसे ये कोई क्रिकेट मैच हो और उनका हित इससे जुड़ा हुआ न हो, या
जैसे वे विदेशी पत्रकार हों।
अन्ना जी एवं उनकी टीम मे और आत्मविश्वास आ गया है इसी लिये इन लोगों ने
अपनी मुहिम को और कठिन मुकाबले की तरफ लिये भेज रहे हैं जिनमें सभी जनता की
भागेदारी और आसान हो गयी है।
अवसर बार बार दस्तक नहीं देता है। स्वतंत्र भारत में इससे बड़ा और इससे सफल आन्दोलन अब तक
नहीं हुआ है। यह अब निर्णायक दौर में है। हम लोगों को अपना दर्शन बघारने का,बुद्धजीवी बनने का,अच्छा
लेखक बनने का बहुत अवसर आयेगा किन्तु देश के लिये इतनी बड़ी सेवा का अवसर कदाचिद ही मिले।
कोई सिद्धान्त,नियम,दर्शन,निर्णय या व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसकी आलोचना के लिये मसाला न मिल सके।
शब्दों के जाल से जन साधारण में संदेह पैदा करना कठिन नहीं है,इस कार्य के लिये अब तक राजनीति करने वाली कम्पनियां लगी ही हुयीं हैं। ये उत्तरदायित्व हम स्वतंत्र लोगों का है (जो लोग किसी के हाथों बिके न हों)
कि इस आन्दोलन के इस निर्णायक दौर में जिस तरह भी हो सके इसे सफल बनायें।

शुभ हो…….

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