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जी हाँ, ये पूरी आजादी है… JAGRAN JUNCTION FORUM

Aakhir Kab Tak ...!
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सच यही है कि हमें पूर्ण आजादी मिली है किन्तु अभी भी हमारे मन में दासता बनी हुई है।
क्या ब्रिटेन आकर हमारे देश के अन्दरूनी मामले में दखल दे सकता है? Common Wealth Game
में यदि हम भाग ना लें तो क्या ब्रिटेन हमारे विरूद्ध कार्यवाही करेगा? लेकिन या तो हम आदतन गुलाम
बने हुये हैं या हम इतने महान हो गये हैं कि इन छोटी-छोटी बातों का कोई असर नहीं लेते हैं।

गांधी,नेहरू आदि की हम चाहे जितनी प्रशंसा या आलोचना कर लें लेकिन जैसे तैसे उन लोगों ने डूबते हुए
देश को किनारे तक खींचा भले वो थोड़े कीचड़ में फंसा रह गया। आज के समय में हम उसी देश को कीचड़ से
बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं और जो लोग प्रयत्न कर रहे हैं उनकी आलोचना अवश्य करते हैं।

हमारे पूर्वजों ने जो आजादी दी है वो आजादी पूरी है। यदि पाकिस्तान अपने एक भाग को अलग होने से नहीं
बचा सका तो ये उसकी कमी थी ,उसकी आजादी में कोई कमी नहीं थी। यदि भारत में नक्सलवाद या अलगाव
वाद की आवाज उठती है तो ये हमारी कमी है न कि हमारी आजादी में कमी है।

हम आजाद हैं अपनी सरकार बनाने के लिये, हम आजाद हैं अपने कानून बनाने के लिये, हम आजाद हैं
अपने बजट बनाने के लिये ,हम आजाद हैं हर वो काम करने के लिये जो अमेरिका, चीन,जापान और हां
ब्रिटेन आदि देश अपनी तरक्की और सुरक्षा के लिये करते हैं। लेकिन हमने आजादी मनायी रूपये, साड़ी,
शराब के लिये वोट देकर।हमने आजादी का लुफ्त लिया अपने को अपनों के ही हाथों लुटवा कर।
हमने आजादी के मजे लिये अनगिनत राजनैतिक दलों के दलदल बना कर जिसमें अल्पमत वाला दल
सरकार में और उससे कई गुणा बड़ा दल विपक्ष की शोभा बढ़ाते हैं।

सच यही है कि हम पूरी तरह गैरों से आजाद हैं,यदि अपने ही हम पर शासन कर रहे हैं तो ये हमारी
आजादी की कमी नहीं है बल्कि हमारी कमजोरी है।

आधी आजादी जैसी कोई बात है ही नहीं। यदि कुछ लोग Common Wealth Game जैसी कुछ
चीजों को गुलामी को प्रतीक मानते हैं तो इसको तो जब चाहें तब समाप्त कर सकते हैं लेकिन क्या
कोई इतिहास भी बदल सकता है? क्या इस कटु सत्य को मिटा सकते हैं कि हम कभी गुलाम थे?
इस नजरिये से तो खुद स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस भी गुलामी का ही प्रतीक है क्योंकि इस दिन
तो हम बच्चे बच्चे को बताते हैं कि हम कभी गुलाम थे।जब इतिहास नहीं बदल सकते तो इन प्रतीकों को
संजो कर रखना चाहिये और आने वाली पीढ़ी को ये दिखाकर बताना चाहिये कि कैसे हमारे शूर वीर प्रतापी
राजाओं के होते हुए भी बाहरी हमलावरों ने हम पर कब्ज़ा किया,अपनों में एकता न होने से कैसे इन बाहरियों
ने लम्बे समय तक शासन किया और कैसे दूर देश के अंग्रेजो ने सौ साल से भी अधिक समय तक हमें गुलाम
बनाये रखा।

आजादी में कोई कमी नहीं है। यह प्रकृति का नियम है कि शक्तिशाली अशक्त पर शासन करने का प्रयत्न
करता है। आज इसी नियम से हम पर ‘शासन करने का व्यवसाय’ करने वाले अपने ही लोग हम जन साधारण
को गुलाम बनाने की कुचेष्टा करते हैं। यदि जनसाधारण अपनी आजादी को नहीं पहचानेगा,अपने अधिकारों
को नहीं जानेगा तो उसकी दशा वैसी ही होगी जैसे बचपन से पिंजरे में बन्द तोते के पिंजरे का दरवाजा खोल भी
दिया जाय तो भी वो उड़ कर आजाद नहीं होना चाहता या थोड़ी देर उड़ कर पुनः उसी पिंजरे में शरण ले लेता है।

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